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Devi Akhilandeswari

सिन्दूरारुण विग्रहां त्रिनयनां माणिक्यमौलि स्फुरत् तारा नायक शेखरां स्मितमुखी मापीन वक्षोरुहाम् । पाणिभ्यामलिपूर्ण रत्न चषकं रक्तोत्पलं बिभ्रतीं सौम्यां रत्न घटस्थ रक्तचरणां ध्यायेत् परामम्बिकाम् ॥

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